जीवन के महत्त्वपूर्ण नियम | Jivan Ke Niyam
Ramcharit Manas Me Varnit Jivan Ke Niyam In Hindi
श्री रामचरित्र मानस (तुलसी कृत) में वर्णित जीवन के महत्त्वपूर्ण नियम | jivan ke niyam के साथ जीवन जीने से ही जीवन वास्तविक अर्थ समझ में आता है। "जीवन के महत्त्वपूर्ण नियम" न केवल हमें सफल बनने में सहायता करते हैं, बल्कि शांति, संतुलन और आत्मिक विकास की ओर भी ले जाते हैं।जीवन में नियम हमें अनुशासन सिखाते हैं। जीवन में स्थिरता और उद्देश्य लाते हैं, मन को भटकने से बचाते हैं, सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। नैतिक मूल्यों का विकास करते हैं।जीवन के कुछ पालनीय नियम
यदि श्री रामचरित मानस (तुलमी कृत रामायण) का अनुष्ठान करने वाले यथाशक्ति इन नियमों का पालन करें तोलाभ और भी शीघ्र होगा
(१) भूमि पर या लकड़ी के तख्त पर सोयें चारपाई या पलंग पर नहीं ।
(२) सूर्योदय से पहले उठिये और कुल्ला एवम् यथा संभव स्नान करके साफ शुद्ध हो जाइये।
(३) भोजन सादा और सात्विक कीजिये। यदि हो सके तो एक बार, नहीं तो हलका-हलका दो बार लेवें।
(४) सत्य बोलिये यथाशक्ति मौन रहिये।
(५) पाठ करते समय बीच में मत बोलिये. इधर-उधर मत देखिये, भगवान् का ध्यान करते रहिये, शान्त रहिये।
(६) पाठ करते समय लघुशंका के लिये जाना पड़े तो जल से लिग को शुद्ध कीजिये, कुल्ला कीजिये और पांव धो लीजिये तब पाठ पर बैठिये । यदि शौच जाना पड़े तो स्नान करिये और वस्त्र बदल कर बैठिये।
(७) पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें, अष्टाङ्ग मैथुन से बचें।
श्लोक-
* स्मरणं कीर्तनं केलि प्रक्षणं गुह्य भाषणम्,
संकल्पोऽथ प्रयत्नश्च, क्रिया निष्पत्तिरेव च ||
(१) देखी हुई स्त्री का यदि स्त्री हो तो देखे हुए पुरुष का बुरी भावना से स्मरण न करे।
(२) उसका कथन भी न करें।
(३) केलि यानी क्रीड़ा न करे।
(४) बुरी दृष्टि से न देखे।
(५) गुप्त भाषण न करे।
(६) बुरा संकल्प उत्पन्न न करे।
(७) उसकी प्राप्ति का प्रयत्न न करे। दूषित क्रिया न करे। इस प्रकार दोषों से प्रत्येक स्त्री पुरुष को बचकर रहना चाहिए, वही पूर्ण ब्रह्मचारी व ब्रह्मचारिणी है।
(८) पाठ करने के लिये रामायण अपनी खास ही होनी चाहिए, पवित्र स्थान पर पुस्तक को रखें। पाठ के समय पुस्तक का आसन अपने आसन से ऊंचा होना चाहिए । प्रतिदिन ग्रन्थ को प्रणाम करके पाठ आरम्भ करें, श्री रामचरितमानस श्री रामचन्द्रजी का अङ्ग ही है इसमें सदेह नहीं, अङ्ग कैसे है यह आगे लिखेंगे।
(९) मन्त्र की एक माला जप लिया करे तथा चलते फिरते उठते-बैठते भी करते रहें । दृढ़ विश्वास रखें कि श्री सीतारामजी की कृपा से लाभ हो रहा है, सफलता होगी ही।
(१०) जो निर्धनता के कारण या अन्य किसी रुकावट से हवन करके मन्त्र सिद्ध न कर सकें. वे सम्पुट सहित तुलसी कृत रामायण का नवाह्न अथवा मास पारायण करें और जब तक लाभ न हो तब तक करते रहें । प्रथम सम्पुट की एक माला जप कर पाठ प्रारम्भ करें।
(११) जो कोई सज्जन या साध्वी पठित न होने के कारण या अन्य रोग आदि की असमर्थता के कारण पाठ भी न कर सकें तो उनको चाहिए कि अपनी कामना के अनुकूल मन्त्र चुनले यदि पढ़े हुए न हों तो किसी से भी पूछ कर याद करलें । फिर शांत होकर उस मन्त्र को बैठकर अथवा चलते-फिरते अधिक से अधिक सख्या में जपें या गायन करते रहें । ऐसा करके बहुतों को लाभ उठाते देखा गया है। बस श्रद्धा और विश्वास चाहिए।
(११) पाठ या जप आवश्यकता होने पर विश्वास पूर्वक करना चाहिए, मन में शंका सन्देह रखकर या केवल परीक्षा करने के लिये नहीं करना चाहिए । सम्पुट की १ माला नित्य जप लिया करें । यह सभी कल्याण प्रक ८०/१६५५ गीता प्रेस, "कलियुग का कल्प वृक्ष" रामायण शक्ति, रामायण सन्देश तथा गुरुदेव के निजी अनुभव के आधार पर लिखा गया है ।