तृष्णा नहीं बूढी हुई लिरिक्स | Trishna Nahi Buddhi Lyrics

Trishna Nahi Buddhi Lyrics In Hindi
* थे दाँत हाथी दांत सम,मजबूत हिलने लग गये,
जैसे गिरें छत से कड़ी,
एक-एक गिरने लग गये ||
* खूंटे गिरे डाढ़े गिरीं,
बत्तीसि सारी गिर गई,
मुख हो गया है पोपला,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* आंखें हुई हैं धुन्धली,
पढ़ना पढ़ाना बन्द है,
नहि पास तक का दीखता,
अब दृष्टि इतनी मन्द है ||
* कुछ भी नहीं अब सूझता,
है रात दिन की हो रही,
आंखें दिखाई ग्रांख ने,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* अब कान आना कानि की,
ऊँचा सुनाई देय है,
जब जोर से चिल्लाय कोई,
बात कुछ सुन लेय है ||
* सुनना-सुनाना बन्द है,
नहि आस सुनने की गई,
बहरे हुए हैं कान पर,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* काया गली भुरीं पड़ीं,
लोहू हुआ है लापता,
पग डिगमिगाते चालते,
कर कांपते सिर हालता ||
* जी हाथ लाठी बांस की,
धनु सम कमर है मुकगई,
काया हुई बूढी मगर,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* बेटे बहू विपरीत हैं,
मानें नहीं कोई कहा,
रोटी मिले नहि वक्त पर,
है स्वाद भी जाता रहा ||
* बाबा मरा माई मरी,
है कूच पत्नी कर गई,
इज्जत गई लज्जत गई,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* सब इन्द्रियां बलहीन हैं,
नहि देह में सामर्थ्य है,
नहि खा सके नहि पी सके,
सब भांति से असमर्थ है ||
* नहि हिल सके नहि झुक सके,
अब खाट तक भी कट गई,
मरना न फिर भी चाहता,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* पुत्रादि कहते हैं सभी,
बुड्डा बहुत दुख पाय है,
देता हमें भी कष्ट है,
मर क्यों नहीं अब जाय है ||
* मर जाय अच्छा होय अब तो,
कष्ट की हद हो गई,
मरना न फिर भी चाहता,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
* बुड्डा मरण सब चाहते,
बुड्डा मरा नहि चाहता ।
धन धाम के कुल ग्राम के,
भोला मनोरथ ठानता ||
* वाणी हुई है बन्द नाहीं,
देह आशक्ति गई,
मरना न फिर भी चाहता,
तृष्णा नहीं बूढ़ी हुई ||
★ तृष्णा की बाढ़ का उपाय सन्तोष ★
* जो दस बीस पचास भये,शत होंय हजारन चाह मगेगी ||
* कोटि अरब्ध खरब्धनिलों,
पृथिवी पति होन की चाह जगेगी ||
* स्वर्ग पताल को राज चहों,
तृष्णा अधिकी अति आग जगेगी ||
* 'सुन्दर' एक सन्तोष बिना,
शठ तेरी तो भूख कबहुँ न भगेगी ||
|| इति || || श्री मुनीशानन्द कल्पतरु ||