श्री काली कवच | Shri Kali Kavach

Shatru Nashak Kali Kavach

श्री काली कवच | Shri Kali Kavach एक अत्यंत शक्तिशाली तांत्रिक स्तोत्र है जो देवी महाकाली की कृपा से साधक को शत्रुओं, नकारात्मक शक्तियों, रोगों और भय से रक्षा प्रदान करता है। यह कवच विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है जो जीवन में बाधाओं, ग्रह दोषों या तंत्र-मंत्र के प्रभाव से परेशान हैं। इस कवच का नियमित पाठ शत्रुओं का नाश करता है और साधक को विजयी बनाता है। यह कवच बुरी शक्तियों, तंत्र-मंत्र और नजर दोष से सुरक्षा प्रदान करता है। विशेष रूप से शनि की साढ़ेसाती, महादशा या ढैया के प्रभाव को कम करने में सहायक है।साधक को मानसिक शांति, आत्मबल और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।


Shri Kali Kavach

शत्रु नाशक काली कवच हिन्दी में

नारद उवाच
* कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम्,
नाथ त्वत्तो हि सवज्ञ भद्रकाल्याश्च साम्प्रतम् ||१||

नारायण उवाच
* शृणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम्,
गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ||२||

* ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाक्षरीम,
दुर्वासा हि ददौ राज्ञ पुष्करे सूर्यपर्वणि ||३||

* दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिः कृता पुरा,
पञ्चलक्षजपेनैव पठन् कवचमुत्तमम् ||४||

* बभूव सिद्धकवचोऽप्ययोध्यामाजगाम सः,
कृत्स्नां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादतः ||५||

नारद उवाच
* श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा,
अधुना श्रोतमिच्छामि कवचं ब्रू हि मे प्रभो ||६||

नारायण उवाच
* शृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्रः कवचं परमादद्भुतम्,
नारायणेन यद् दत्त कृपया शूलिने पुरा ||७||

* त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च,
तदेव शूलिना दत्त' पुरा दुर्वाससे मुने ||८||

* दुर्वाससा च यद् दत्त सुचन्द्राय महात्मने ।
अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौधविग्रहम् ||९||

* ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम्,
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने ||१०||

* ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु,
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्त सदावतु ||११||

* हीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेऽधरयुग्मकम्,
ॐह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठ सदावतु ||१२||

* ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्म सदावतु,
ॐ क्रीं क्रीं क्लीं-काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम ||१३||

* ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदावतु,
ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभि सदावतु ||१४||

* ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदावतु,
रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु ||१५||

* ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु,
ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्ग मे सदावतु ||१६||

* प्राच्यां पातु महाकाली आग्नेय्यां रक्तदन्तिका,
दक्षिणे पातु चामुन्डा नैऋत्यां पातु कालिका ||१७||

* श्यामा च बारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका,
उत्तरे विकटास्या च ऐशान्यां साट्टहासिनी ||१८||

* ऊध्व पातु लोलजिह्वा मायाद्या पात्वधः सदा,
जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसूः सदा ||१९||

* इति ते कथित वत्स सर्वं मन्त्रौधविग्रहम्,
सर्वेषां कवचानां च सारभूत परात्परम् ||२०||

* सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोऽस्य प्रसादतः,
कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपतिः ||२१||

* प्रचेता लोमशश्चैव यतः सिद्धो बभूव ह,
यतो हि योगिनां श्रेष्ठः सौर्भारः पिप्पलायनः ||२२||

* यदि स्यात् सिद्धकवचः सर्वसिद्धिश्वरो भवेत्,
महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च,
निश्चित कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ||२३||

* इदं कवचमज्ञात्त्वा भजेत् कालीं जगत्प्रसूम्,
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ||२४||

इति श्रीब्रह्मवैवर्त मन्त्रं सहित काली कवचं सम्पूर्णम् ( गणपति खण्ड ३७/१-२४)

श्री शत्रु नाशक काली कवच के पाठ उपरांत इन मंत्रो का आवाहन करे-

श्री काली स्तुति

* काली काली महाकाली,
कालिके परमेश्वरी,
सर्वानन्दकरे देवी,
नारायणि नमोऽस्तुते ||

श्री शीतला स्तुति

* शीतले त्वं जगन्माता,
शीतले त्वं जगत्पिता,
शीतले त्व' जगद्धात्री,
शीतलायै नमो नमः ||

चामुण्डा मन्त्र

* ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः ||

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