मल्लाह की टेर लिरिक्स | Mallah Ki Ter Lyrics
Mallah Ki Ter Lyrics In Hindi
मल्लाह की टेर लिरिक्स इन हिंदी | Mallah Ki Ter Lyrics In Hindi एक भावुक और जीवन के संघर्षों से भरा गीत है, जो एक मल्लाह (नाविक) की पीड़ा, उम्मीद और उसके जीवन की कठिनाइयों को उजागर करता है। इस गीत में इंसान की मजबूरी, साहस और ईश्वर पर अटूट विश्वास को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है।मल्लाह की टेर लिरिक्स इन हिंदी
१- मल्लाह कहता टेर कर,नौका खड़ी तैयार है,
जल्दी करो आओ चढ़ो,
चढ़ते ही बेड़ा पार है।
अन्तिम घड़ी संजा पड़ी,
बेड़ा न फिर से आयेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहि पार जाने पायेगा ||
२- मल्लाह कहता टेर कर,
चेतो मुसाफिर मानवी,
जग यन्त्र है पर तन्त्र,
दुख की योनि दैवी दानवी।
जो नाव पर चढ़ जायेगा,
सो नर सुखी हो जायेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहिं पार जाने पायेगा ||
३- मल्लाह कहता टेर कर,
जग आशा दुख का ढेर है,
जन्मादि भोगे कष्ट जो,
सुनता न मेरी टेर है।
जो मुग्ध है संसार पर,
जन्मे मरे पछितायेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहिं पार जाने पायेगा ||
४- मल्लाह कहता टेर कर,
बहु घंट शंख बजाय के,
मिथ्या जगत है ब्रह्म सत,
श्रुति शास्त्र कहते गाय के।
उपदेश नौका पर चढ़े सो,
ब्रह्म में मिल जायेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहि पार जाने पायेगा ||
५-मल्लाह कहता टेर कर,
संसार सर्व असार है,
सुख रूप आतम तत्त्व सो,
सब सार का भी सार है।
सद्गुरु चतुर मल्लाह है वहि,
सार तत्त्व लखायेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहि पार जाने पायेगा ||
६- मल्लाह कहता टेर,
मेरी नाव पक्की एक है,
हैं वेद चारों बल्लियां,
पतवार पूर्ण विवेक है।
दो पद उठा कर द्वन्द्व के,
बैठे वही तर जायेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहिं पार जाने पायेगा ||
७- मल्लाह कहता टेर जग की,
आस सब तज दीजिये,
तन धन तथा सुत दार से,
मुख मोड़ अपना लीजिए।
देहादि की ममता जिसे,
फिर-फिर जगत में आयेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहिं पार जाने पायेगा ||
८- मल्लाह की सुनिटेर,
संसारी नहीं है चेतता,
चढ़ता नहीं है आज पामर,
बाट कल की देखता।
करता रहेगा आज कल,
यम आ अचानक खायेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहिं पार जाने पायेगा ||
९- मल्लाह की यह टेर सुन,
घबरा मुमुक्षू जाय है,
संसार से पल्ला छुड़ाता,
डिगमिगाता धाय है।
मन में करे है सोच बेड़ा,
हाथ में कब आयेगा,
जो रह गया सो रह गया,
नहि पार जाने पायेगा ||
१० - मल्लाह की यह टेर सुन,
सच्चा मुमुक्षु छोड़ सब,
पहुंचा तुरत ही नाव पर,
मल्लाह ने कौशल्य तब।
लीन्हा चढ़ा गहि हाथ को,
ले पार पहुंचा नाव को,
जो जीव था सो शिव हुया,
पाया अनामय तत्त्व को ||