श्री अन्नपूर्णा चालीसा लिरिक्स | Shree Annpurna Chalisa Lyrics

Maa Vindhyachal chalisa lyrics In Hindi
दोहाविश्वेश्वर पदपदम की रज,
निज शीश लगाय,
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं,
कवि मतिलाय ||
चौपाई
नित्य आनंद करिणी माता,
वर अरु अभय भाव प्रख्याता ||१||
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी,
अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ||२||
श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि,
संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ||३||
काशी पुराधीश्वरी माता,
माहेश्वरी सकल जग त्राता ||४||
वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी,
विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ||५||
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि,
पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ||६||
पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा,
योग अग्नि तब बदन जरावा ||७||
देह तजत शिव चरण सनेहू,
राखेहु जात हिमगिरि गेहू ||८||
प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,
अति आनंद भवन मँह छायो ||९||
नारद ने तब तोहिं भरमायहु,
ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ||१०||
ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये,
देवराज आदिक कहि गाये ||११||
सब देवन को सुजस बखानी,
मति पलटन की मन मँह ठानी ||१२||
अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या,
कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ||१३||
निज कौ तब नारद घबराये,
तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ||१४||
करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ,
संत बचन तुम सत्य परेखेहु ||१५||
गगनगिरा सुनि टरी न टारे,
ब्रहां तब तुव पास पधारे ||१६||
कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा,
देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ||१७||
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी,
कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ||१८||
अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों,
है सौगंध नहीं छल तोसों ||१९||
करत वेद विद ब्रहमा जानहु,
वचन मोर यह सांचा मानहु ||२०||
तजि संकोच कहहु निज इच्छा,
देहौं मैं मनमानी भिक्षा ||२१||
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी,
मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ||२२||
बोली तुम का कहहु विधाता,
तुम तो जगके स्रष्टाधाता ||२३||
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों,
कहवावा चाहहु का मोंसों ||२४||
दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा,
शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ||२५||
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये,
कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ||२६||
तब गिरिजा शंकर तव भयऊ,
फल कामना संशयो गयऊ ||२७||
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा,
तब आनन महँ करत निवासा ||२८||
माला पुस्तक अंकुश सोहै,
कर मँह अपर पाश मन मोहै ||२९||
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे,
अज अनवघ अनंत पूर्णे ||३०||
कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ,
भव विभूति आनंद भरी माँ ||३१||
कमल विलोचन विलसित भाले,
देवि कालिके चण्डि कराले ||३२||
तुम कैलास मांहि है गिरिजा,
विलसी आनंद साथ सिंधुजा ||३३||
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी,
मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ||३४||
विलसी सब मँह सर्व सरुपा,
सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ||३५||
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा,
फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ||३६||
प्रात समय जो जन मन लायो,
पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ||३७||
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,
परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ||३८||
राज विमुख को राज दिवावै,
जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ||३९||
पाठ महा मुद मंगल दाता,
भक्त मनोवांछित निधि पाता ||४०.||
दोहा
जो यह चालीसा सुभग,
पढ़ि नावैंगे माथ |
तिनके कारज सिद्ध सब,
साखी काशी नाथ ||
इति श्री अन्नपूर्णा चालीसा